सीखने के वक्र (Learning Curves)

हम अपने जीवन में नई बातें, नये कार्य व नये विषय सीखते हैं जैसे अंग्रेजी पढ़ना, कार चलाना, चित्र बनाना आदि। हमारी इन सबको सीखने की गति आरम्भ से अन्त तक एक सी नहीं होती, यह कभी तेज व कभी धीमी होती है। यदि हम सीखने की गति को एक ग्राफ पेपर पर अंकित करें, तो एक वक्र रेखा बन जायेगी, इसी को सीखने का वक्र ;बनतअमद्ध कहते हैं। दूसरे शब्दों में सीखने का वक्र सीखने में होने वाली उन्नति या अवनति को व्यक्त करता है।

गेट्स व अन्य – सीखने के वक्र अभ्यास द्वारा सीखने की मात्रा , गति और उन्नति की सीमा का ग्राफ पर प्रदर्शन करते है |

सीखने के वक्र की विशेषताएं- 

  1. सीखने में उन्नति– सीखने के वक्र को हम मोटे तौर पर तीन अवस्थाओं में बांट सकते हैं-प्रारम्भिक, मध्य व अन्तिम। सीखने की गति समान नहीं होती अन्तिम अवस्था की तुलना में प्रारम्भिक अवस्था में उन्नति बहुत तीव्र होती है।
  2. प्रारम्भिक (Initial Stage) प्रारम्भिक अवस्था में सीखने की गति में तीव्रता होती है, परन्तु यह सार्वभौम विशेषता नहीं है।
  3. मध्य अवस्था (Middle Stage) जैसे-जैसे व्यक्ति अभ्यास करता जाता है, वैसे-वैसे वो सीखने में  उन्नति करता जाता है। परन्तु उन्नति का रूप स्थायी नहीं होता, कभी-कभी उन्नति तीव्र होती है कभी कम।
  4. अन्तिम अवस्था (Last Stage) जैसे-जैसे सीखने की अन्तिम अवस्था आती है वैसे-वैसे सीखने की गति धीमी पड़ जाती है और एक अवस्था ऐसी आती है, जब व्यक्ति सीखने की सीमा पर पहुंच जाता है।
  5. सीखने की गति अनेक बातों पर निर्भर करती है जैसे सीखने वाले की रुचि, प्रेरणा, जिज्ञासा, उत्साह, कार्य की सरलता या जटिलता।

 

सीखने में पठार (Plateaus in Learning) जब हम कोई नई बात सीखते है, तो हम लगातार उन्नति नहीं करते। हमारी उन्नति कभी कम और कभी अधिक होती है। कुछ समय बाद ऐसा अवसर भी आता है, जब हमारी उन्नति बिल्कुल रुक जाती है। इस सपाट स्थल को सीखने में पठार कहते हैं।

पठार निम्नलिखित कारणों से आता है-

  • प्रेरणा का अभाव-उचित प्रेरकों के अभाव में भी सीखने में पठार आ जाता है।
  • रुचि में कमी होना-सीखते-सीखते यदि बालक की उस कार्य में रुचि कम हो जाती है तो सीखने में पठार आ जाता है।
  • शारीरिक सीमा-बच्चे में उत्साह तो तथा उसे अच्छी से अच्छी पद्धति से सिखाया जाये, लेकिन वो अपनी शारीरिक सीमा के अनुकूल ही उन्नति करता है, किसी भी दशा में उसकी क्षमता में अधिक उन्नति नहीं हो सकती।
  • सीखने की अनुचित विधियां- सीखने की अनुचित आदते भी पठार पैदा करती है जैस कलम को कस कर पकड़ना, उंगली पर गिनती करना आदि।
  • कार्य की गहनता- प्रारम्भ में कोई क्रिया सरल होती है, बाद में क्रिया कठिन होती जाती है। इससे सीखने में गतिवरोध उत्पन्न होता है।
  • पुरानी आदतों व नई सीखी आदतों में संघर्ष- किसी प्रकार के कौशलात्मक कार्य को सीखने में पुरानी आदतें नवीन आदतों में बाधा डालती है। जैसे टाइप करने में अक्षर अभ्यास के बाद शब्द अभ्यास में पुरानी आदत अक्षर अभ्यास बाधा पैदा करते हैं।
  • प्राप्त ज्ञान को स्थायी बनाना- पठार प्रकृति द्वारा प्रदत्त वह साधन है, जिसके द्वारा प्राप्त ज्ञान को स्थायी बनाया जाता है व पठार आ जाता है।
  • अन्य कारण जैसे थकान, निराशा, उदासीनता जिज्ञासा व उत्साह में कमी, अस्वस्थता दुखित वातावरण व पारिवारिक कठिनाइयां आदि

पठार को दूर करने के उपाय- शिक्षक को पठार को दूर करने के लिए निम्नलिखित उपाय करने चाहिये-

  • सीखने वाले को प्रेरणा देना।
  • नवीन प्रणालियों का प्रयोग।
  • कार्य के बीच-बीच में विश्राम देना।
  • सीखने की उचित विधियों का प्रयोग।
  • बच्चों के व्यक्तिगत भेदों पर ध्यान देकर उनकी क्षमता के अनुसार सीखने की सुविधा प्रदान करना।
  • बच्चों का उत्साहवर्धन करना।
  • सीखने का वातावरण इस प्रकार रखे कि वो साीखने की प्रक्रिया में यथासम्भव सहायता प्रदान करें।
  • कभी-कभी बालक हतोत्साहित हो जाते हैं, ऐसी स्थिति में शिक्षकों को चाहिये कि वो समय-समय पर बच्चों का उचित मार्गदर्शन करें।

शिक्षक का यह कर्तव्य है कि वह पठार के कारणों का पता लगाये और उनको दूर करने का प्रयत्न करें ताकि सीखने की प्रक्रिया सफलतापूर्वक आगे बढ़े।

पुनरावृत्ति बिन्दु

  1. हम सीखने की गति को एक ग्राफ पेपर पर प्रदर्शित करते है, तो उसे सीखने का वक्र कहते हैं।
  2. सीखते समय अचानक सीखने की गति का रूक जाना सीखने में पठार कहलाता है।
  3. सीखने में पठार आने के कारण विभिन्न हो सकते हैं, जैसे रुचि व प्रेरणा में कभी, सीखने की अनुचित विधि, थकान आदि।